रविवार, 24 जनवरी 2016

मेरी लंठ गुरु की कलम

तुम रूबरू हुए,हम बेखबर होते गए।
क्या दौर है,जमाना बदल रहा है।
जब गौर किया तो रिश्ते नाते
सब वही बस स्वयं बदल गया।

वो दिन ये दिन सब देखते हुए बडे हुए,
आज जहा तुम हो हम भी तो खडे हुए।

हर लोग हर चलायमान जिंदा हैं पर दिख रही,,


मानवता हर पल तार तार होती दिख रही।.

कोई कही तो सिख लो,,,

ना कुछ तो प्रेम का ही बस भींख दो,,,


कब तलक लंठ गुरु ही बस जगाते घुमेगा।



कभी कभी तो स्वय का अलार्म फिट लो।

जो समय से तुमको जगायेगा,,

जब राह गलत होगी तो अलार्म तो बचायेगा।


कल तक लोग लंठ कहते रहे,,,


पर आज कुछ बनने की बारी आई है,,


पकड लो प्रेम का राह नई रोशनी दिखाई है।


लंठ गुरु की कलम से

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

सन्तोष का आगमन

सन्तोष का आगमन नित नूतन चितमन।
हर दृश्य अदृश्य चेत मन खुला तन और मन।।

राह डगर की बात हो,हर नगर शहर की बात हो।
सन्तोष का आगमन,हर गली शहर मे ठाठ हो।।

गरीब,अमीर की बात कहे,,सबकुछ द्रश्यमान हो,
ना उंच हो ना नीच हो,हद से अधिक मान हो।।

बही हवा प्यार की-लंठ के ब्यार की।
लंठन की टोली जुटी,मस्त मौला और बहार की।।

सन्तोष का आगमन नित नूतन चितमन

कवि-सन्तोष कुमार यादव*लंठ गुरु*